पाठ - 5
संगठन
संगठन - संगठन कार्य को समझने, वर्गीकरण करने तथा अधिकार अंतरण करने की प्रक्रिया है |
संगठन प्रक्रिया के चरण -
1. कार्य की पहचान तथा विभाजन - सबसे पहले विशिष्ट कार्यो को संगठन द्वारा निर्धारित उद्देश्यों के अनुसार पहचान कर उनको छोटे - छोटे भागो में विभाजित करना होता है |
2. विभागीकरण - कार्यो को छोटे - छोटे भागो में बाँटने के बाद एक जैसी क्रियाओं को एक विशेष विभाग को सौप दिया जाता है इस प्रक्रिया को ही विभागीकरण कहते है | जैसे - कच्चा माल क्रय करना, पुर्जे क्रय करना आदि के लिए क्रय विभाग |
3. कर्तव्यो का निर्धारण - विभागीकरण के बाद प्रत्येक विभाग को जिसे विभाग अध्यक्ष कहते है को सोंप दिया जाता है | यह निर्धारण कार्य की प्रकृति, कर्मचारियों की क्षमता, कुशलता, तथा उनकी योग्यता के आधार पर किया जाता है |
4. रिपोर्टिंग सम्बंध स्थापित करना - कर्तव्यों के निर्धारण के बाद रिपोर्टिं सम्बंध स्थापित करना अति आवश्यक है इसका अर्थ है की प्रत्येक कर्मचारी को यह ज्ञात होना चाहिए की उसे किससे आदेश लेना है तथा कौन उसका अधिकारी है और कौन अधीनस्थ |
संगठन का महत्व -
1. विशिष्टीकरण का लाभ |
2. कार्य सम्बन्धो में स्पष्टीकरण |
3. संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग |
4. प्रभावी प्रसाशन |
5. परिवर्तन को अपनाना |
6. कर्मचारियों का विकास |
7. विस्तार तथा विकास |
संगठन ढांचा - संगठन प्रक्रिया द्वारा जिस ढांचे का निर्माण किया जाता है उसे संगठन ढांचा कहा जाता है | इसके अन्दर कार्यो की पहचान कर उनको छोटे - छोटे भागो में बाँट दिया जाता है फिर उनका विभागीकरण कर कर्तव्यो का निर्धारण किया जाता है अंततः सभी पदों पर कार्य कर रहे कर्मचारियों के सम्बन्धो को स्पष्ट किया जाता है |
संगठन ढांचे के प्रकार -
1. क्रियात्मक संगठन ढांचा
2. प्रभागीय संगठन ढांचा
क्रियात्मक संगठन ढांचा - इसमे संस्था के समस्त कार्यो को बड़े - बड़े भागो ( जैसे उत्पादन , विपणन, क्रय, वित् आदि ) भागो में बाँट दिया जाता है | क्रियात्मक संगठन ढांचा ऐसी संस्था द्वारा अपनाई जाती है जहाँ एक ही उत्पाद बेचा जाता हो |
उपयोगिता -
1. जहाँ व्यवसाय का आकार बड़ा हो |
2. जहाँ विशिष्टीकरण जरुरी हो |
3. जहाँ एक ही उत्पाद बेचा जाता हो |
लाभ -
1. कार्यो को छोटे - छोटे भागो में बाँटने से कार्य कम समय में तथा अच्छे से हो जाता है | जिससे संगठन को विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते है |
2. एक विभाग में एक ही कार्य को बार - बार करने के कारण सभी व्यक्ति उसके विशेषज्ञ हो जाते है जिससे विभाग में समन्वय स्थापित करने में सहायता मिलती है |
3. एक विभाग में एक ही कार्य को बार - बार किया जाता है जिससे प्रबंधकीय कुशलता में वृद्धि होती है |
4. सभी कर्मचारियों को यह ज्ञात होता है की उसे किससे आदेश लेना है तथा क्या कार्य करना है जिसके कारण कार्य की दोहराई कम हो जाती है |
5. इससे कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने में आसानी होती है क्योंकि एक कर्मचारी का काम का दायरा कम होता है |
हानियाँ -
1. इससे संगठनात्मक उद्देश्यों की अवेहलना होती है क्योंकि सभी विभाग अध्यक्ष अपनी मर्जी से काम करते है तथा हमेशा अपने विभाग के उद्देश्यों को आधिक महत्व देते है |
2. सभी विभाग अध्यक्ष अपनी मर्जी से काम करते है जिससे सभी विभागो में समन्वय या एकता स्थापित करने में कठिनाई होती है |
3. इससे कामचारी के पूर्ण विकास में बाधा आती है क्योंकि वे एक ही कार्य को बार - बार करते और सिर्फ उसी कार्य के विशेषज्ञ बनते है न कि पूरे कार्य के |
प्रभागीय संगठन ढांचा - इसमे संस्था को उसके द्वारा उत्पादित किए जाने वाले विभिन्न उत्पादों ( जैसे दवाइयां, कपडे, साबुन आदि ) के आधार पर बाँट दियां जाता है | प्रभागीय संगठन ढांचा ऐसी संस्था द्वारा अपनाई जाती है जहाँ एक से अधिक उत्पादों को बेचा जाता हो |
उपयोगिता -
1. जहाँ एक से अधिक उत्पादों को बेचा जाता हो |
2. जहाँ व्यवसाय का आकार बहुत बड़ा हो |
3. जो तेजी से विकास कर रहे हो |
लाभ -
1. इससे प्रभाग अध्यक्ष या डिविजनल अध्यक्ष अपने उत्पाद से सम्बंधित सभी कार्यो को संभालता है जिससे उसमे कई तरह के कौशल विकसित हो जाते है |
2. प्रभाग अध्यक्ष अपने प्रभाग से सम्बंधित परिणामो की मापता है जिससे यह पता चल जाता है की प्रभाग को कितना लाभ हो रहा है या हानि |
3. प्रत्येक प्रभाग अध्यक्ष अपनी मर्जी से काम करते है तथा निर्णय लेते है जिससे शीघ्र निर्णय होता है |
हानियाँ -
1. कभी - कभी प्रभाग अध्यक्षों के बीच मतभेद उत्तपन हो जाते है |
2. इससे काम की बार - बार दोहराई हो जाती है |
3. प्रत्येक प्रभाग अध्यक्ष अपने प्रभाग को सबसे अच्छा साबित करने के लिए संगठन के हितो को अनदेखा कर देते है |
औपचारिक संगठन - औपचारिक संगठन से अभिप्राय किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए प्रबंधको द्वारा जानबूझ कर तैयार किए गए ढांचे से है | औपचारिक संगठन क्रियात्मक तथा प्रभागीय कोई सा भी ढांचा हो सकता है |
लक्षण -
1. यह जानबुझ कर स्थापित किया जाता है |
2. यह नियमो पर आधारित होता है |
3. यह अधिक स्थिर होता है |
4. इसमे व्यक्ति का नहीं काम का महत्व होता है |
5. इसमे परिभाषित आपसी सम्बंध होता है |
लाभ -
1. कार्यो की दोहराई नहीं होती |
2. इससे कर्मचारियों को यह अच्छे से ज्ञात होता है की किससे आदेश लेना है जिससे आदेश कि एकता का पालन होता है |
3. निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी होती है |
4. संगठन में स्थिरता होती है क्योंकि सभी नियमो का पालन करते हुए अपने - अपने कार्यो को करते है |
5. इससे उतरदेयता निर्धारण करने में सहायता मिलती है क्योंकि सबके अधिकार तथा उतरदायित्व निश्चित होते है |
हानियाँ -
1. कार्यो को नियम के अनुसार करने के कारण कभी - कभी देरी हो जाती है |
2. पहल क्षमता में कमी आती है क्योंकि कर्मचारियों को वैसा ही करना पड़ता है जैसा उनको आदेश मिलता है |
अनौपचारिक संगठन - ऐसा संगठन जिसकी स्थापना जानबूझ कर नहीं की जाती बल्कि अपने आप ही सामान हितो, रुचियो, तथा धर्मो के कारण हो जाती है ऐसे संगठन को अनौपचारिक संगठन कहते है |
लक्षण -
1. इसमे लिखित किसी भी प्रकार के नियम तथा कानून नहीं होते है |
2. लोगो के बीच संदेशो का प्रभाव स्वतंत्र होता है |
3. यह औपचारिक संगठन पर आधारित होता है क्योंकि औपचारिक संगठन में काम कर रहे लोगो के बीच ही अनौपचारिक सम्बंध होते है |
4. यह जानबूझ नहीं बनाया जाता है अनौपचारिक संगठन की स्थापना अपने आप ही हो जाती है |
5. इसका कोई निश्चित ढांचा नहीं हैं |
लाभ -
1. इसमे किसी भी तरह के नियम कानून न होने के कारण सन्देश बहुत जल्दी एक स्थान से दुसरे स्थान पर पहुँच जाते है |
2. यह सदस्यों की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है क्योंकि सदस्य के सभी लोग एक दुसरे का साथ देते है |
3. यह संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है | इसमे एक कर्मचारी बिना किसी डर के अपनी समस्याओं को अधिकारियो से कह सकते है |
हानियाँ -
1. यह अफवाहे फैलता है क्योंकि सभी व्यक्ति लापरवाही से बात करते है |
2. यह संगठन में किसी भीं तरह के परिवर्तन का विरोध करता है |
3. यह समूह के लोगो पर दबाव बनता है की वह समूह के सभी सदस्यों की उम्मीदों का ध्यान रखे |
औपचारिक संगठन - औपचारिक संगठन से अभिप्राय किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए प्रबंधको द्वारा जानबूझ कर तैयार किए गए ढांचे से है | औपचारिक संगठन क्रियात्मक तथा प्रभागीय कोई सा भी ढांचा हो सकता है |
लक्षण -
1. यह जानबुझ कर स्थापित किया जाता है |
2. यह नियमो पर आधारित होता है |
3. यह अधिक स्थिर होता है |
4. इसमे व्यक्ति का नहीं काम का महत्व होता है |
5. इसमे परिभाषित आपसी सम्बंध होता है |
लाभ -
1. कार्यो की दोहराई नहीं होती |
2. इससे कर्मचारियों को यह अच्छे से ज्ञात होता है की किससे आदेश लेना है जिससे आदेश कि एकता का पालन होता है |
3. निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी होती है |
4. संगठन में स्थिरता होती है क्योंकि सभी नियमो का पालन करते हुए अपने - अपने कार्यो को करते है |
5. इससे उतरदेयता निर्धारण करने में सहायता मिलती है क्योंकि सबके अधिकार तथा उतरदायित्व निश्चित होते है |
हानियाँ -
1. कार्यो को नियम के अनुसार करने के कारण कभी - कभी देरी हो जाती है |
2. पहल क्षमता में कमी आती है क्योंकि कर्मचारियों को वैसा ही करना पड़ता है जैसा उनको आदेश मिलता है |
अनौपचारिक संगठन - ऐसा संगठन जिसकी स्थापना जानबूझ कर नहीं की जाती बल्कि अपने आप ही सामान हितो, रुचियो, तथा धर्मो के कारण हो जाती है ऐसे संगठन को अनौपचारिक संगठन कहते है |
लक्षण -
1. इसमे लिखित किसी भी प्रकार के नियम तथा कानून नहीं होते है |
2. लोगो के बीच संदेशो का प्रभाव स्वतंत्र होता है |
3. यह औपचारिक संगठन पर आधारित होता है क्योंकि औपचारिक संगठन में काम कर रहे लोगो के बीच ही अनौपचारिक सम्बंध होते है |
4. यह जानबूझ नहीं बनाया जाता है अनौपचारिक संगठन की स्थापना अपने आप ही हो जाती है |
5. इसका कोई निश्चित ढांचा नहीं हैं |
लाभ -
1. इसमे किसी भी तरह के नियम कानून न होने के कारण सन्देश बहुत जल्दी एक स्थान से दुसरे स्थान पर पहुँच जाते है |
2. यह सदस्यों की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है क्योंकि सदस्य के सभी लोग एक दुसरे का साथ देते है |
3. यह संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है | इसमे एक कर्मचारी बिना किसी डर के अपनी समस्याओं को अधिकारियो से कह सकते है |
हानियाँ -
1. यह अफवाहे फैलता है क्योंकि सभी व्यक्ति लापरवाही से बात करते है |
2. यह संगठन में किसी भीं तरह के परिवर्तन का विरोध करता है |
3. यह समूह के लोगो पर दबाव बनता है की वह समूह के सभी सदस्यों की उम्मीदों का ध्यान रखे |
अधिकार अंतरण
अधिकार अंतरण : अधिकार अंतरण से अभिप्राय अधिकारीयों द्वारा अधीनस्थों को एक निश्चित सीमा तक कार्य करने का अधिकार देने से हैं |
अधिकार अंतरण के तत्व
(i) उत्तरदायित्व
(ii) अधिकार
(iii) जवाबदेही
(1) उत्तरदायित्व : उत्तरदायित्व से अभिप्राय अधिकारीयों द्वारा सौंपे गए कार्य को अधीनस्थों द्वारा सही प्रकार से करना हैं | उत्तरदायित्व, काम सौंपने की प्रक्रिया से ही प्रारम्भ हो जाता हैं |
विशेषताएं
(i) उत्तरदायित्व दूसरें व्यक्ति को सौंपा जाता हैं |
(ii) इसकी उत्पति अधिकारी-अधीनस्थ संबंधों के कारण उत्पन्न होती हैं |
(2) अधिकार : अधिकार से अभिप्राय निर्णय लेनी की शक्ति से हैं | जब अधिकारी अधीनस्थ को अधिकारों का अंतरण करता हैं तो वे अधीनस्थ को किसी कार्य को करने व न करने का निर्णय लेने का भी अधिकार देता हैं |
विशेषताएं
(i) अधिकार को दूसरें व्यक्ति को सौंपा जाता हैं |
(ii) अधिकार, अधिकारीयों द्वारा अधीनस्थों को सौंपे जाते हैं
(iii) इसका संबंध पद से होता हैं |
(3) जवाबदेही : जवाबदेही से अभिप्राय अधीनस्थों द्वारा अपने कार्य निष्पादन के लिए अधिकारीयों को जवाब देने से हैं |
विशेषताएं
(i) जवाबदेही को दूसरें को नहीं सौंपा जा सकता हैं |
(ii) इसका आधार अधिकारी-अधीनस्थ सम्बन्ध से होता हैं |
(iii) यह केवल अधिकार सौंपने वाले व्यक्ति के प्रति होता हैं |
(iv) यह अधिकार सौंपने के कारण उत्पन्न होता हैं |
अधिकार व उत्तरदायित्व में अंतर
उत्तरदायित्व व जवाबदेही में अंतर
अधिकार व उत्तरदायित्व में अंतर
उत्तरदायित्व व जवाबदेही में अंतर
अधिकार अंतरण की प्रक्रिया
(i) उत्तरदायित्व सौंपना : अधिकार अंतरण की क्रिया का पहल चरण उत्तरदायित्व का सौंपना हैं | प्रायः कोई भी अधिकारी इतना सक्षम नहीं होता की वह अपने सभी कार्यों को सफ़लता पूर्वक पूर्ण कर सकें इसलिए वे अपने सम्पूर्ण कार्य का बंटवारा करता हैं | मुख्य कार्य को अपने पास रख, अतिरिक्त कार्यों को कर्मचारियों में में विभाजित कर देते हैं | जो की कर्मचारियों की योग्यता के अनुसार विभाजित किए जाते हैं |
(ii) अधिकार प्रदान करना : अधिकार अंतरण के दूसरें चरण में सौंपे गए कार्य को पूर्ण करने के लिए कर्मचारियों को अधिकार प्रदान किए जाते हैं जिससें की कर्मचारी ठीक समय पर उचित निर्णय ले सकें |
(iii) जवाबदेही निश्चित करना : यह अधिकार अंतरण की आखिरी प्रक्रिया हैं जिसमें कर्मचारियों की जवाबदेही निश्चित की जाती हैं | इस चरण में कर्मचारियों को अपने द्वारा निष्पादित कार्य के लिए एक विशेष अधिकारी को जवाब देना पड़ता हैं अर्थात किए गए कार्य का स्पष्टीकरण देना |
अधिकार अंतरण का महत्व
(i) प्रभाव पूर्ण प्रबंध : प्रभावपूर्ण का अर्थ है-उद्येश्यों का सफलतापूर्वक प्राप्त होना | अधिकार अंतरण की प्रक्रिया से प्रबंधकों पर सामान्य कार्यों का कार्यभार कम होता हैं | जिससें वे मुख्य कार्यों पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं और संगठन के उद्येश्य को सफ़लता से प्राप्त कर पाते हैं |
(ii) कर्मचारी विकास : अधिकार अंतरण से कर्मचारी के विकास को प्रोत्साहन मिलता हैं | क्योंकि अधिकार अंतरण की प्रक्रिया से कर्मचारी निर्णय लेने के काबिल बनते हैं | जिससें वे भविष्य में भी कठिन समय में सही निर्णय के योग्य बनाते हैं |
(iii) कर्मचारीयों का अभिप्रेरण : जब अधिकारी द्वारा अधीनस्थों को कार्य सौंपे जाते हैं तो कर्मचारी इस स्थिति का लाभ उठाते हुए अपनी योग्यता व कुशलता का बेहतर प्रदर्शन करते हैं | जिससें संगठन में उनकी पहचान बनती हैं और उनके कार्य संतुष्टि में वृद्धि होती हैं |
(iv) अधिकारी-अधीनस्थ संबंधों का आधार : अधिकारी अंतरण अधिकारी-अधीनस्थ को स्थापित करने का कार्य करता हैं | किसी संगठन में अधिकारी-अधीनस्थ में अच्छे व्यावसायिक सम्बन्ध उस व्यवसाय की सफ़लता को निश्चित करता हैं |
(v) विकास में सहायक : अधिकार अंतरण की प्रक्रिया से केवल कर्मचारियों का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण संगठन का विकास होता हैं | पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध योग्य कर्मचारी से संगठन में विस्तार, आधुनिकीकरण व विविधिकरण में मदद मिलती हैं |
विकेंद्रीकरण
विकेंद्रीकरण से अभिप्राय संगठन की छोटी-से छोटी क्रियाओं के , जितना व्यवहारिक को सकें, अधिकार व दायित्व का वितरण करने से हैं |
विकेंद्रीकरण की विशेषताएं
(i) अधिकार अंतरण का विस्तृत रूप
(ii) अधीनस्थों की भूमिका को महत्व देना
(iii) यह सम्पूर्ण संगठन में लागू होने वाली प्रक्रिया हैं |
(iv) अधिकारीयों के कार्यभार को कम करता हैं
(v) इसमें अधिकार के साथ-साथ जवाबदेही का भी हस्तांतरण भी होता हैं |
विकेंद्रीकरण का महत्व
(i) अधीनस्थों में पहल क्षमता का विकास : विकेंद्रीकरण के अंतर्गत बड़ी मात्रा में अधिकारों का हस्तांतरण किया जाता हैं | अधिकार कर्मचारियों को सोचने व कुछ नया करने की क्षमता देता हैं | जिससें उनमें पहल क्षमता का भी विकास होता हैं |
(ii) शीघ्र निर्णयन : विकेंद्रीकरण कर्मचारियों को शीघ्र निर्णय लेने के योग्य बनता हैं क्योंकि जब कर्मचारियों को कार्य सौंपा जाता हैं तो उन्हें कई स्थितियों में शीघ्र निर्णय लेने पड़ता हैं जिससें वे शीघ्र निर्णय ले पाने के काबिल बन पाते हैं |
(iii) बेहतर नियंत्रण : क्योंकि विकेंद्रीकरण में हर स्तर पर कार्य का मूल्यांकन किया जाता हैं और जवाबदेही भी निश्चित की जाती हैं इससे संगठन में सभी क्रियाओं पर पूर्ण नियंत्रण रहता हैं |
अधिकार अंतरण और विकेंद्रीकरण में अंतर
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