[2021] Chapter 7 - Directing ( निर्देशन ) Notes Class 12 In Hindi


 अध्याय - 7 निर्देशन 

निर्देशन - निर्देशन से हमारा अभिप्राय ये हैं की संगठन में कर्मचारियों या मानव संसाधन को निर्देश देना, उनका मार्गदर्शन करना तथा उन्हें अभिप्रेरित करने की प्रक्रिया से है ताकि संगठन के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सके।

[2021] Chapter 7 - Directing ( निर्देशन ) Notes Class 12 In Hindi

निर्देशन की विशेषताएँ -

1. निर्देशन संगठन के अन्दर अन्य कार्यो को करने के लिए आधार प्रदान करता है तथा कार्य को प्रारंभ करता है |

2. निर्देशन प्रबन्ध के प्रत्यक स्तर पर होता है | इसकी आवश्यकता प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर होती है |

3. निर्देशन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है | यह संगठन के पुरे जीवन काल मे निरंतर चलती रहती है क्योंकि प्रबंधक को हमेशा कर्मचारियों का मार्गदर्शन करना होता है |

4. निर्देशन का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है क्योंकि निर्देश ऊपर से नीचे की ओर दिए जाते है | यह उच्चस्तरीय प्रबंध से शुरू होकर निम्नस्तरीय प्रबंध पर समाप्त होता है |

निर्देशन का महत्व -

1. निर्देशन कार्यो को गतिशीलता प्रदान करता है अर्थात कार्यो को प्रारंभ करता है क्योंकि संगठन में कार्यो को तब तक शुरू नहीं किया जा सकता जब तक बड़े अधिकारियो से निर्देश प्राप्त न हो जाए | 

2. कर्मचारियों के प्रयासों में सामंजस्य लाना | एक संगठन में अनेक लोग काम करते है तथा सभी के काम एक दुसरे से जुड़े है | निर्देशन सभी कार्यो के बीच मार्गदर्शन, अभिप्रेरणा आदि की सहायता से सामंजस्य स्थापित करता है |

3. यह अभिप्रेरणा का माध्यम है | संगठन के उद्देश्यों को अभिप्रेरित कर्मचारी ही पूरा कर सकते है |इन कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने का कार्य निर्देशन प्रक्रिया द्वारा ही होता है |  

4. यह परिवर्तनों को लागू करना संभव बनाता है | प्रायः कर्मचारी जिस ढांचे में काम कर रहे होते है, उसमे वे कोई बदलाव नहीं चाहते है | निर्देशन द्वारा कर्मचारियों को इस प्रकार मनाया जाता है की वे परिवर्तनों को आसानी से स्वीकार कर ले | 

5. यह संगठन में संतुलन स्थापित कराता है | कभी - कभी व्यक्तिगत उद्देश्यों तथा संगठनात्मक उद्देश्यों के बीच में संघर्ष पैदा हो जाते है | निर्देशन समय - समय पर कर्मचारियों का मार्गदर्शन कर, उन्हें अभिप्रेरित कर इन संघर्षो को दूर करता है तथा यह संगठन में संतुलन स्थापित कराता है |

निर्देशन के तत्व -

1. पर्वेक्षण - पर्यवेक्षण से अभिप्राय अपने अधिनस्थो के दिन - प्रतिदिन के कार्यो की जाँच करना, उन्हें कार्य सबंधी निर्देश देना, उनका मार्गदर्शन करना तथा उन्हें प्रशिक्षण देने से है |   

2. अभिप्रेरणा - अभिप्रेरणा से अभिप्राय निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए लोगो को प्रेरित करने की प्रक्रिया से है |

3. नेतृत्व -  नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगो को इस प्रकार प्रभावित किया जाता है की वे स्वंय ही अपनी इच्छा से संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते है |  

4. सम्प्रेषण - संप्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत संदेशो तथा विचारो को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है ताकि वे एक दूसरें को आसानी से समझ सके |

पर्यवेक्षण- पर्यवेक्षण से अभिप्राय अपने अधिनस्थो के दिन - प्रतिदिन के कार्यो की जाँच करना, उन्हें कार्य सबंधी निर्देश देना, उनका मार्गदर्शन करना तथा उन्हें प्रशिक्षण देने से है |   

पर्यवेक्षण का महत्व / पर्येक्षक की भूमिका -

1. कर्मचारियों तथा प्रबन्ध के मध्य कड़ी |

2. निर्देशों को जारी किया जाना |

3. अनुशासन बनाये रखना |

4. कर्मचारियों का मार्गदर्शन करना |

5. प्रतिपुष्टि(फीडबैक) |

6. अभिप्रेरणा में वृद्धि |

7. संसाधनों का कुशलतम उपयोग |

पर्येक्षक के कार्य - 

1. पर्वेक्षक कर्मचारियों तथा प्रबन्ध के मध्य कड़ी का कार्य करता है |

2. पर्वेक्षक उच्च अधिकारियो द्वारा दिए गए निर्देशों को कर्मचारियों तक पहुंचता है |

3. पर्वेक्षक कार्यो पर नियंत्रण रख अनुशासन बनाये रखने में सहायता करता है | 

4. पर्वेक्षक समय - समय पर कर्मचारियों का मार्गदर्शन करता है |

5. पर्वेक्षक कर्मचारियों के लगता संपर्क में रहता है तथा समय - समय पर उनके विचार, शिकायत सम्बंधित उनसे फीडबेक लेता रहता है |

6. पर्वेक्षक कर्मचारियों की आवश्यकताओं का पता लगा कर उन्हें अभिप्रेरित करते हैं |

7. पर्यवेक्षक अनावश्यक गतिविधियों को समाप्त कर संसाधनों का कुशलतम उपयोग करने में सहायता करता है |

अभिप्रेरणा - अभिप्रेरणा से अभिप्राय निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए लोगो को प्रेरित करने की प्रक्रिया से है |

अभिप्रेरणा की विशेषताएँ-

1. अभिप्रेरणा एक आंतरिक अनुभव है |

2. लक्ष्य निर्धारित व्यवहार |

3. सकारात्मक अथवा नकारात्मक |

4. जटिल प्रक्रिया |

5. सतत प्रक्रिया |

अभिप्रेरणा का महत्व -

1. अभिप्रेरणा कर्मचारियों के निष्पादन स्तर में सुधार के साथ-साथ संगठन के सफल निष्पादन में सहायक है |

2. अभिप्रेरणा के द्वारा कर्मचारियों के नकारात्मक दृष्टिकोण को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदला जा सकता हैं।

3. अभिप्रेरणा कर्मचारियों के संस्था को छोड़कर जाने की दर को कम करता है |

4. अभिप्रेरणा संगठन में कर्मचारियों की अनुपस्तिथि दर को कम करती है |

5. अभिप्रेरणा प्रबंधको को नए परिवर्तनों को लागू करने में सहायता देती है | 

मास्लो की विचारधारा - क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धांत 

1. शारीरिक आवश्कताएँ - इस क्रम में वे आवश्यकताएं शामिल की गई है जिसको मनुष्य के जीवित रहने के लिए सबसे पहले पूरा किया जाता है | इसमे भोजन,मकान,वस्त्र, हवा,पानी,की अन्य आवश्कताए शामिल है |

2. सुरक्षा की आवश्यकताए - शारीरिक आव्शाक्तएं पूरी होने के बाद मनुष्य अपनी सुरक्षा चाहता है |  वह अपने आप को भौतिक तथा आर्थिक दोनों तरह से सुरक्षित रखना चाहता है | इसमे नौकरी, सुरक्षा, पेंशन योजनाएं इत्यादि शामिल है |

3. सामाजिक आवश्यकताएँ - भौतिक तथा आर्थिक दोनों तरह से सुरक्षित होने के बाद मनीषी का ध्यान सामाजिक आवश्यकताओं पर जाता है | इसमे लगाव, स्नेह, समाज से जुड़े होने का अहसास, मित्रता आदि शामिल है |

4. सम्मान की आवश्यकताएँ - कोई भी मनुष्य लोगो से, अपने वरिष्ठो से सम्मान की आशा रखता है | इस क्रम में आत्मसम्मान, पद, पहचान, व ध्यान शामिल है |

5. स्वयं संतुष्टि - स्वयं संतुष्टि का अर्थ अपने आप को उचाई तक ले जाने की चाह से है | जैसे एक लेखक लिखने का विशेषज्ञ बनना चाहता है |

मौद्रिक तथा गैर मौद्रिक प्रोत्साहन -

मौद्रिक प्रोत्साहन -

1. वेतन तथा भता - वेतन महंगाई भता आदि |

2. लाभ में भागीदारी - संस्था के लाभों में कर्मचारियों का हिस्सा |

3. बोनस - वेतन के अतिरिक्त |

4. उत्पादकता सम्बंधित परिप्रमित - कार्य के अनुसार पारिश्रमिक |

5. अनुलाभ - कार भता, घर |

6. सहभागीदारी या स्टॉक - बाजार से कम कीमत पर अंश |

7. सेवा निवृति लाभ - पेंशन आदि |

गैर मौद्रिक प्रोत्साहन -

1. पद प्रतिष्ठा - कर्मचारियों को उच्च पद देना ताकि उनकी सामाजिक व मान - सम्मान की आवश्यकता पूरी हो सके।

2. संगठनिक वातावरण - कर्मचारियों को काम करने के लिए अच्छा कार्य वातावरण प्रदान करना।

3. जीवनवृति विकास के सुअवसर - कौशल में वृद्धि।

4. पद संवर्धन - कर्मचारियों के कार्य को और अधिक रुचिकर बनाना।

5. कर्मचारियों को मान - सम्मान देने सम्बंधित कार्यक्रम को करना।

6. पद सुरक्षा - स्थायी नौकरी |

7. कर्मचारियों की भागीदारी - निर्णय लेने में भागीदारी |

नेतृत्व - नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगो को इस प्रकार प्रभावित किया जाता है की वे स्वंय ही अपनी इच्छा से संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते है |  

नेतृत्व की विशेषताएँ -

1. नेतृत्व किसी व्यक्ति की दूसरो को प्रभावित करने की योग्यता को दर्शाता है |

2. नेतृत्व, दूसरो के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है |

3. नेतृत्व नेता तथा अनुयायियों के मध्य उनके पारस्परिक समबंधो को दर्शाता है |

4. नेतृत्व संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए जाते है |

5. नेतृत्व एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है |

नेतृत्व की शैलियाँ-

1. निरंकुशवादी नेतृत्व - इस शैली में प्रबंधक सारे अधिकार अपने पास रखता है | सारे आदेश वह देता है तथा इस बात पर जोर देता है की उसके आदेशो को बीना किसी सुझाव तथा विरोध के पालन किया जाए | वह बिना विचार - विमर्श कर नीतियाँ तैयार करता है |

2. जनतांत्रिक या सहभागी नेतृत्व - जनतांत्रिक शैली नेतृत्व की वह शैली है जिसमे प्रबंधक अंतिम निर्णय अधिनस्थो से विचार - विमर्श करने के बाद ही लेता है | यह नेतृत्व शैली विकेंद्रीकरण पर आधारित है | यह शैली कर्मचारियों को उनके कार्य के प्रति अभिप्रेरित करती है |

3. अहस्तक्षेप नेतृत्व - इस शैली में प्रबंधक अपने अधिनस्थो को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करते है | इसमे प्रबंधक अपने अधिकारों का कम प्रयोग करता है तथा कार्यो में कम रूचि लेता है | अधीनस्थ अपनी इच्छा तथा क्षमता के अनुसार कार्य करते है |

संदेश्वाहन : अवधारणा 

संदेशवहन का अग्रेज़ी रूपांतरण कम्युनिकेशन हैं जो की कॉमन से बना है जिसका अर्थ दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच में समान रूप के विचारों का संवहन से हैं | अर्थात जिस अर्थ में सन्देश दिया जा रहा हैं उसी अर्थ में सन्देश को समझाना |

संदेशवाहन की विशेषताएं 

(i) कोई भी सन्देशवाहन एक व्यक्ति द्वारा संपन्न नहीं होता हैं | इसके लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती हैं | एक सन्देश प्राप्तकर्ता की और सन्देश  भेजने वाले व्यक्ति की |

(ii) संदेश्वाहन में एक व्यक्ति से दूसरें व्यक्ति को सन्देश, विचार व भावनाओं का विनिमय होता हैं |

(iii) संदेशवाहन से लोगों में आपसी समझा बनी रहती हैं | क्योंकि व्यक्ति इसके द्वारा अपने विचार दूसरों तक पंहुचा सकता हैं |

(iv) संदेश्वाहन की प्रक्रिया लगातार चलती रहती हैं | क्योंकि व्यवसाय में सन्देश प्रबंधक से कर्मचारियों को और कर्मचारियों की समस्या प्रबंधक को संवाहित होता हैं |

(v) सन्देश का प्रवाह या तो शब्दों में, या फिर संकेतों में किया जाता हैं |

संदेशवहन की प्रक्रिया 

(1) प्रेषक/ सन्देश भेजने वाला : प्रेषक वह व्यक्ति है जो अपने विचारों को दूसरों को संवाहित करता हैं | जैसे:-  प्रबंधक कर्मचारियों को नई योजनाओं को के बारे में सूचना का संवाहन करता हैं |

(2) सन्देश : यह वह विषय वस्तु हैं जो प्रेषक किसी अन्य व्यक्ति को संवाहित करना चाहता हैं | जैसे :- भावनाएं, विचार, दृष्टिकोण,और आदेश आदि |

(3) संदेशबद्धता : इसके अंतर्गत प्रेषित सन्देश को सन्देश चिन्हों में बदला जाता हैं | जैसे :- इशारों, शब्दों, चित्रों व ग्राफ आदि में |

(4) माध्यम/संचारण : कोई भी सन्देश बिना माध्यम के संवाहित नहीं किया जा सकता हैं | सन्देश कई माध्यमों के द्वारा संवाहित किया जा सकता हैं | जैसे :- पत्र लिखकर, टेलीविजन के द्वारा, i-मेल, संकेतों द्वारा और वार्तालाप द्वारा |

(5) प्राप्तकर्ता : जो सन्देश प्राप्त करता हैं |

(6) संदेशवाचक : इसके अंतर्गत सन्देश को संक्षेप में किया जाता हैं | जो कि सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा समझा जा सकें |

(7) वापस जानकारी अथवा प्रतिपुष्टि : यह सन्देश प्रक्रिया की सबसे अन्तिम क्रिया हैं | जिसमें सन्देश प्राप्तकर्ता से प्रतिपुष्टि पाई जाती हैं जो यह निर्धारित करती हैं कि सन्देश, सन्देश प्राप्तकर्ता को उसी रूप में मिल गया हैं जिस रूप में प्रेषक भेजना चाहता था |

संदेश्वाहन के प्रकार 

(i) औपचारिक संदेशवाहन

(ii) अनौपचारिक संदेश्वाहन 

(1) औपचारिक संदेश्वाहन  : औपचारिक संदेश्वाहन से अभिप्राय सन्देश प्रवाह की उस व्यवस्था से हैं जिसमें सन्देश का प्रवाह सोपनिक श्रंखला में या प्रबंध द्वारा निर्धारित व्यवस्था के अनुसार किया जाता हैं |

विशेषताएं 

(i) लिखित व मौखिक : औपचारिक सन्देशवाहन लिखित या मौखिक में किया जाता हैं |

(ii) औपचारिक सम्बन्ध : औपचारिक सन्देश का प्रवाह प्रबंध के द्वारा स्थापित औपचारिक सम्बन्ध में ही किया जाता हैं |

(iii) निश्चित पथ : औपचारिक सन्देश का प्रवाह एक निश्चित पथ में किया जाता हैं; जैसे:- प्रबंधक द्वारा कर्मचारियों को योजन की जानकारी देना |

(iv) संगठनात्मक सन्देश : इसके अंतर्गत केवल   संगठनात्मक संदेशों का ही प्रवाह  जा सकता   हैं |कोई भी कर्मचारी किसी  भी तरह का सन्देश को प्रषित नहीं कर सकता हैं |

औपचारिक संदेशवाहन के लाभ 

(i) औपचारिक संदेशवाहन की प्रक्रिया में अधिकारीयों के पद की गरिमा की सुरक्षा होती हैं | क्योंकि औपचारिक संदेशवहन प्रक्रिया में सन्देश का प्रवाह अधिकारीयों व अधीनस्थों के बीच एक व्यवस्थित क्रम में होता हैं |

(ii) औपचारिक संदेशाप्रवाह में सन्देश स्पष्ट व प्रभावपूर्ण होते हैं |

(iii) अधिकारीयों से अधीनस्थ के बीच सूचनाओं का व्यवस्थित प्रवाह |

औपचारिक संदेशवहन की सीमाएं 

(i) औपचारिक संदेशवहन में कई सूचनाओं जैसे:- सन्देश, योजनायें आदि का प्रवाह एक निश्चित क्रम में करना होता हैं जिससें कर्मचारियों व अधिकारीयों पर कार्य का अधिक बोझ रहता हैं |

(ii) औपचारिक संदेशवाहन में सूचनाओं का स्वरूप भी बदलने की संभावना होती हैं क्योंकि इसमें सन्देश भेजने का मार्ग अधिक लम्बा होता हैं |

(iii) औपचारिक संदेशवाहन में कर्मचारियों के सुझावों को अनदेखा किया जाता हैं |

औपचारिक संदेशवाहन के प्रकार

(i) लम्बवत संदेशवाहन

 (a) नीचे की और अथवा अधिमुखी संदेशवाहन : इसमें आदेश, नियम, सूचनाओं, नीतियों व निर्देश का संवाहन किया जाता हैं | अधिकारीयों से अधीनस्थों की ओर |

 (b) ऊपर की ओर अथवा उध्र्वमुखी संदेशवाहन : इसमें प्रतिक्रियाएं, प्रतिवेदन, शिकायतें आदि का प्रवाह | अधीनस्थों से अधिकारीयों की ओर |

(ii) समतल संदेशवाहन : जो की एक ही स्तर के दो व्यक्तियों में होता हैं |

औपचारिक संदेशवाहन जाल

(i) श्रंखला संदेशवाहन : इसमें सन्देश का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होती हैं |

(ii) चक्रीय संदेशवाहन : इसमें एक केंद्र से सन्देश का प्रवाह सभी को किया जाता हैं |

(iii) घूमता हुआ संदेशवाहन : इसमें एक समूह में एक व्यक्ति अपने से निकट के व्यक्तियों को सन्देश का प्रवाह करता हैं |

(iv) मुक्त प्रवाह संदेशवाहन : इस सन्देश जाल में एक समूह के विभिन्न सदस्य एक-दूसरें से सन्देश का प्रवाह किया जा सकता हैं |

(v) अधोमुखी 'वी' संदेशवाहन : इस सन्देश प्रवाह में एक अधीनस्थ को अपने बॉस के बॉस से प्रत्यक्ष बात करने की अनुमति होती है |  

(2) अनौपचारिक संदेशवाहन : यह सन्देश व्यवस्था किसी अधिकारी द्वारा नहीं अपितु किसी संस्था के सदस्यों में आपसी मित्रता, विवेक, सुझाव आदि के कारण स्थापित होती हैं |

अनौपचारिक संदेशवाहन की विशेषताएं

(i) यह व्यवस्था किसी संस्था में उसके सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों के कारण स्थापित होती हैं | जैसे :- मित्रता, सहयोग, सहेजभाव के कारण |

(ii) अनौपचारिक संदेशवाहन में कार्य व व्यक्ति दोनों से संबंधित सन्देश का प्रवाह होता हैं |

(iii) इसमें अपवाह व गलतफहमियों की संभावना होती हैं | क्योंकि इसके अंतर्गत व्यक्तियों का दायित्व का निर्धारण नहीं किया जा सकता हैं |

(iv) इसमें सुचना शीघ्र प्रवाहित होती हैं |

अनौपचारिक संदेशवाहन के लाभ

(i) सन्देश का शीघ्र प्रवाह तथ प्रभावपूर्ण सन्देशवाहन |

(ii) इसकें अंतर्गत सभी को अपनी बात कहने की लिए खुला वातावरण उपलब्ध होता हैं |

(iii) अनौपचारिक संदेशवाहन से सभी अधिकारीयों व अधीनस्थों में अच्छे सम्बन्ध बने रहते हैं |

(iv) इसके अंतर्गत समस्याओं का शीघ्र समाधान किया जाता हैं क्योंकि सन्देश का प्रवाह जितनी शीघ्रता से होगा उतनी ही शीघ्रता से निर्णय भी लिये जाएगे |

(v) कर्मचारियों की सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति करता हैं क्योंकि अनौपचारिक संदेशवाहन में कर्मचारी अधिकरियों से विचार-विमर्श कर पाते हैं |

अनौपचारिक संदेशवाहन की सीमाएं

(i) क्योंकि अनौपचारिक संदेशवाहन में सन्देश का प्रवाह एक निश्चित क्रम में नहीं होता हैं इसलिए सन्देश वव्यवस्थित क्रम में उपलब्ध नहीं होता हैं |

(ii) इसकें अंतर्गत दायित्व का निर्धारण नहीं करना कठिन होता हैं |

(ii) अनौपचारिक संदेशवाहन में सन्देश कम विश्वनीय होते हैं |

अन्गूरीलता जाल

इससें अभिप्राय उन प्रकारों से है जिसकें द्वारा अनौपचारिक संदेशवाहन का कार्य किया जाता हैं |

अन्गूरीलता के प्रारूप

(i) एकल रीति : इसमें एक व्यक्ति अपने किसी विश्वनीय जानकार को सन्देश का प्रवाह करता हैं और इसी प्रकार सन्देश देने की क्रिया की जाती हैं |

(ii) गपशप श्रंखला :  इसकें अंतर्गत सदस्य एक-दूसरें से गपशप करते हुए बातें करते हैं |

(iii)प्रायिकता : इसमें एक व्यक्ति अपने विचारों को दूसरों को संवाह करने की लिए तटस्थ रहता हैं | अर्थात वह अपने विचारों को उसकें पास स्थिति किसी भी व्यक्ति को दे सकता हैं |

(iv) गुच्छा/भीड़-भाड़ : इसकें अंतर्गत एक व्यक्ति अपने अनुसार किसी भी चनयित व्यक्ति को अपने संदेशों का प्रवाह करता हैं | 

संदेशवाहन के माध्यम 

(i) मौखिक, (ii) लिखित, (iii) सांकेतिक |

 प्रभावी संदेशवाहन की बाधाएँ

(1) भाषा सम्बंधित बाधाएँ : संदेशवाहन में सन्देश भेजते समय जब सन्देश के चित्रों, चिन्हों व शब्दों का गलत अर्थ, व्याख्य, अनुमान व विपरीत अर्थ से समझ जाता है तो वह भाषा सम्बंधित बांधाएं कहलाती हैं |

भाषा सम्बंधित बाधाएं निम्नलिखित है;

(i) संदेशों की गलत व्याख्या : भाषा के अस्पष्ट होने पर सन्देश सम्बंधित बाधाएं आती हैं | जैसे:- शब्दों का गलत चुनाव, अभ्रद शब्द, वाक्यों का गलत क्रम आदि |

(ii) भिन्न अर्थों वाले चिन्ह अथवा शब्द : कई बार एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं जिससें सनेश प्राप्तकर्ता को सन्देश को समझने में कठिनाई होती हैं | जैसे :- मूल्य शब्द ; जिसके कई अर्थ है (a) आज कंप्यूटर शिक्षा का अधिक मूल्य हैं (महत्व), (b) मोबाईल का क्या मूल्य हैं (कीमत)

(iii) त्रुटिपूर्ण अनुवाद : जब अधिकारिओं द्वारा भेजे गए सन्देश का अधीनस्थों द्वारा गलत अनुवाद में समझा जाता हैं तो वह त्रुटिपूर्ण अनुवाद सम्बंधित बाधाएं कहलाती हैं |

(iv) अस्पष्ट मान्यातएं : कई बार सन्देश भेजने वाला यह मान कर चलता हैं कि सन्देश प्राप्तकर्ता को आधारभूत बातें पता ही होगी जिसके कारण वह कुछ जानकारियाँ प्राप्तकर्ता को संवाद ही नहीं करता हैं | जिससें सन्देश में बाधाएं उत्पन्न होती हैं |

(v) अर्थहीन तकनीकी भाषा: कई बार सन्देश में तकनीकी भाषाओँ का उपयोग करने से भी संदेशावाहन में बाधाएं आती हैं क्योंकि कई व्यक्तियों को इसका ज्ञान नहीं होता हैं |

 

(2) मनोवैज्ञानिक बाधाएं : किसी भी संदेशवाहन की प्रक्रिया में दोनों पक्ष के पक्षकारों की मानसिक स्थिति भी सन्देश में बाधा ला सकती हैं इसलिए संदेशवाहन कि प्रक्रिया में दोनों पक्षकारों की मानसिक स्थिति अच्छी होनी चाहिए |

(i) समय से पूर्व मूल्यांकन : कई बार सन्देश प्राप्तकर्ता सूचना के पूरा हुए बगैर ही उस सन्देश का अर्थ निकालने लगता हैं | जिसके कारण सूचना भेजने वाले के उत्साह में भी कमी आती हैं और सन्देश का भी गलत प्रवाह होता है |

(ii) ध्यान की कमी : संदेशवाहन की प्रक्रिया में कभी-कभार सन्देश प्राप्तकर्ता संदेश भेजने वाले की बातों पर ध्यान नहीं देता है | वह कुछ ओर ही सोच-विचार में लगा रहता हैं | जिससें संदेशवाहन में मनोवैज्ञानिक बाधाएं उत्पन्न होती हैं |

(iii) अविश्वास : कई बार देखा जाता हैं कि प्रेषक व प्राप्तकर्ता में विश्वास की कमी होती है जिसकें कारण भी वह एक-दूसरें की बातों को महत्व नहीं देते हैं |

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(3) संगठनात्मक बाधाएं
: यह बाधाएं संगठन के ढांचे से सम्बंधित हैं | जैसे;

(i) संगठनात्मक नीतियाँ : संगठनात्मक नीतियों के द्वारा भी सन्देश में बाधाएं उत्पन्न होती हैं | जैसे :- किसी संगठन की यह नीति है कि संगठन में सभी सन्देश लिखित रूप में प्रवाह किये जाएगे, इससें संगठन में सन्देश का प्रवाह भी धीमी गति से होगा और प्रत्येक सूचना देने के लिए सन्देश का लिखित रूप का ही उपयोग करना पड़ेगा |

(ii) नियम व अधिनियम : संदेशवाहन की विषय सामग्री व माध्यम को निश्चित करके भी संगठन सन्देश में बाधा उत्पन्न करता हैं | जैसे:- संगठन के नियम अनुसार किसी भी सन्देश को भेजने के लिए कंप्यूटर का ही उपयोग करना होगा | इससें छोटे-से छोटे सन्देश को भेजने के लिए कंप्यूटर का ही उपयोग करना पड़ेगा |

(iii) संगठनात्मक ढांचे में जटिलता : किसी संगठन के संदेशवाहन की कुशलता उसके संगठनात्मक ढांचे पर भी निर्भर करती हैं | यदि किसी संगठन में अधिक प्रबंधकीय स्तर होगे तो सन्देश पहुँचाने में भी अधिक समय लगेगा और सूचना के प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने तक उसका अर्थ भी बदल जाने की संभावना रहेगी |

(iv) संगठनात्मक सुविधाएँ : कई बार संगठन में पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध न होने के कारण भी संदेशवाहन में समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं | जैसे :- कर्मचारियों के लिए किसी भी शिकायत बाक्स का न होना, कर्मचारियों व अधिकारीयों के सन्देश में असमंजस की स्थिति ला सकता हैं |

(4) व्यक्तिगत बाधाएं : जब संदेशवाहन में बाधाएँ किसी पक्ष के पक्षकार द्वारा उसके किसी व्यक्तिगत कारण की वजह से होती है तो उन बाधाओं को व्यक्तिगत बाधाएं कहलाती हैं | इसके उदहारण ;

(i) अधिकारीयों को चुनौतियों का भय : संगठन में प्रत्येक व्यक्ति ऊंचे पद पर बने रहने के लिए अपनी कमजोरियों को छिपता रहना हैं और अपने विचारों को खुल कर दूसरों के सामने नहीं रखता हैं | जिसके कारण भी सन्देश में बाधा होती हैं |

(ii) अधीनस्थों में विश्वास की कमी : संगठन में उच्च अधिकारीयों की यह मान्यता रहती है कि अधीनस्थों में कम योग्यता होती है जिसकें कारण वे कई बार सूचनाओं का प्रवाह अधीनस्थों को करते ही नहीं हैं फलस्वरूप कर्मचारियों के उत्साह में भी कमी आती हैं |

(iii) विचारा विनिमय कि अनिच्छा : कई बार कर्मचारियों द्वारा ही सन्देश का प्रवाह अधिकारीयों को नहीं किया जाता हैं इसके कई कारण होते हैं जैसे :- कर्मचारियों में कम आत्मविश्वास, सूचना की स्पष्टता की जानकारी न होना आदि |

(iv) उपयुक्त प्रोत्साहन की कमी : संदेशवाहन में अधीनस्थों की भी अहम् भूमिका होती हैं परन्तु यदि अधीनस्थों में प्रोत्साहन की कमी होती हैं तो वे किसी भी सन्देश को भेजने में हिचकिचाते हैं | जिससें संदेशवाहन की प्रक्रिया अप्रभावी हो होती हैं |

संदेशवाहन की बाधाएं को दूर करने के उपाय

(i) प्राप्तकर्ता की आवश्यकता के अनुसार संदेशवाहन : संदेशवाहन में बाधाओं को दूर करने के लिए सर्वप्रथम यह निश्चित करना चाहिए कि संदेशवाहन प्राप्तकर्ता के अनुसार हो | जैसे:- जो व्यक्ति तकनीकी शब्दों से अपरिचित है उससें संवाद करते समय तकनीकी शब्दों का उपयोग कम करें |

(ii) संदेशवाहन से पूर्व विचारों को स्पष्ट करना : संदेशवाहन में प्रेषक को अपने सन्देश भेजने का उद्येश्य मालूम होना चाहिए | ताकि सन्देश भेजने में कोई समस्या न हो |

(iii) सन्देश की भाषा, शब्द व विषय-वस्तु के प्रति सचेत रहना : सन्देश भेजने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे जिस भाषा व शब्द का उपयोग कर रहा हैं उससें सन्देश प्राप्तकर्ता को कोई ठेस न पहुंचे और वह अधिक तकनीकी शब्दों का उपयोग न करें |

(iv) वर्तमान तथा भविष्य के लिए संदेशवाहन : संदेशवाहन में सन्देश से सम्बंधित बाधाओं को दूर करने के लिए सन्देश में वर्तमान व भविष्य से सम्बंधित जानकारियों को भी दे देना चाहिए, ताकि संदेश में समानता बनी रहें |

(v) एक अच्छा श्रोता बनाना : एक संदेशवाहन प्रक्रिया में प्रेषक व प्राप्तकर्ता को अच्छा श्रोता बना चाहिए, ताकि सन्देश की सभी आवश्यक जानकारियों को याद रखा जा सकें | 



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