📚📚 अध्याय - 3 📚📚
📑📑 आर्थिक सुधारों का दौर : 1991 से अब तक 📚📚
स्वतंत्र भारत में समाजवादी तथा पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुणों को सम्मिलित करते हुए मिश्रित आर्थिक ढांचे को स्वीकार किया गया | भारतीय अर्थव्यवस्था की अक्षम प्रबंधन ने 1980 के दशक तक वित्तीय संकट उत्पन्न कर दिया । सरकारी नीतियों और प्रशासन के क्रियान्वयन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र तथा टैक्स ( कर ) सरकार के आय के स्रोत हैं । भारत में 1991 से भारत सरकार द्वारा कई आर्थिक सुधार किए गए ।
🔹 आर्थिक सुधार की आवश्यकता :-
• विदेशी
व्यापार खाते में घाटा बढ़ता जा रहा था
।
• 1988 से
1991 तक इसके बढ़ने की दर इतनी
अधिक थी कि 91 तक
घाटा 10 , 644 करोड़ हो गया ।
• इसी
समय विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिरकर मात्र
दो सप्ताह के आपात पर्याप्तता
स्तर पर आ गया
।
• 1990 - 91 में
भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा
कोष से वित्तीय सुविधा
के रुप में एक बहुत बड़ी
राशि उधार ली ।
• अल्पकालीन
विदेशी ऋणों के भुगतान के
लिए 47 टन सोना बैंक
ऑफ इंग्लैंड के पास गिरवी
रखना पड़ा ।
• भारतीय
अर्थव्यवस्था के सामने मुद्रास्फीति
का संकट था जिसकी दर
12 % हो गयी थी ।
• मुद्रास्फीति
के कारण कृषि उत्पादों के वितरण और
बाजार मूल्यों ( खरीद मूल्यों ) में वृद्धि हई ।
• परिणामस्वरुप
बजट के मौद्रिकत घाटे
में वृद्धि हई । साथ
- साथ आयात मूल्य में वृद्धि हुई तथा विदेशी विनिमय दर में कमी
हुई । परिणामस्वरुप भारत
के सामने राजकोषीय तथा व्यापार घाटे की समस्या उत्पन्न
• इसलिए भारत के सामने केवल दो ही विकल्प बचे हुए थे :-
1 ) निर्यात
में वृद्धि के साथ - साथ
विदेशी उधार लेकर विदेशी विनिमय प्रवाह में वृद्धि कर भारतीय आर्थिक
स्थिति को बेहतर बनाए
।
2 ) राजकोषीय अनुशासन को स्थापित करें तथा उद्देश्यवरक संरचनात्मक समायोजन लाया जाए ।
🔹 आर्थिक सुधार की मुख्य विशेषताएँ :-
अर्थव्यवस्था की समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने बहुत सारे आर्थिक सुधार किए ।
• सरकार
की औद्योगिक नीति का उदारीकरण
• उद्योगों
के निजीकरण द्वारा विदेशी निवेश को प्रोत्साहन ।
• उदारीकरण
के अंग के रुप में
लाइसेंस को खत्म करना
।
• आयात
और निर्यात नीति को उदार बनाते
हुए आयात और निर्यात वस्तुओं पर आयात शुल्क में कमी जिससे कि औद्योगिक विकास
के लिए आवश्यक कच्चे माल का तथा निर्यात
जन्य वस्तुओं के उत्पादन के
लिए कच्चे माल का आयात तुलनात्मक
रुप से आसान होगा
।
• डॉलर
के मूल्य के रुप में
घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन ।
• देश
के आर्थिक स्थिति में सधार और संरचनात्मक समायोजन
के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक से बहुत अधिक
विदेशी ऋण प्राप्त किया
।
• राष्ट्र
के बैंकिंग प्रणाली और कर संरचना
में सुधार ।
• सरकार द्वारा निवेश में कमी करते हुए बाजार अर्थव्यवस्था को स्थापित करना ।
🔹 उदारीकरण , निजीकरण और वैश्वीकरण ( LPG ) :-
आर्थिक सुधार के नए मॉडल को LPG मॉडल भी कहा जाता है । इस मॉडल का प्राथमिक उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष तीव्रतर विकासशील अर्थव्यवस्था के रुप में स्थापित करना ।
🔹 1 . उदारीकरण :-
उदारीकरण से तात्पर्य सामाजिक राजनैतिक व आर्थिक नीतियों में लगाए गए सरकारी नियंत्रण में कमी से है । भारत में 24 जुलाई 1991 से वित्तीय सुधारों के साथ ही आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरु हुई ।
🔹 2 . निजीकरण :-
निजीकरण से तात्पर्य है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों , व्यवसाय एवम् सेवाओं के स्वामित्व , प्रबंधन व नियंत्रण को निजी क्षेत्र को हस्तान्तरित करने से है ।
🔹 3 . वैश्वीकरण :-
वैश्वीकरण
का अर्थ सामान्यतया देश की अर्थव्यवथा का
विश्व की अर्थव्यवस्था के
एकीकरण से है ।
🔹 भारत में LPG नीति के कुछ मुख्य बिन्दु निम्न है :-
1 ) विदेशी
तकनीकी समझौता
2 ) एम
. आर . टी . पी . एक्ट 1969
3 ) विदेशी
निवेश
4 ) औद्योगिक
लाइसेंस विनियमन
5 ) निजीकरण
और विनिवेश का प्रारंभ
6 ) समुद्रपारीय
व्यापार के अवसर
7 ) मुद्रास्फीति
नियमन
8 ) कर
सुधार
9 ) वित्तीय
क्षेत्र सुधार
10 ) बैंकिंग
सुधार
11 ) लाइसेंस और परमिट राज की समाप्ति ।
🔹 मूल्यांकन :-
उदारीकरण
, निजीकरण व वैश्वीकरण की
अवधारणा एक - दूसरे से जुड़ी हुई
है और इनके अर्थव्यवस्था
पर सकारात्मक व नकारात्मक दोनों
प्रभाव दिखते हैं । कुछ अर्थशास्त्रियों
का मानना है कि वैश्वीकरण
अर्थव्यवस्था के लिए नए
अवसर उपलब्ध कराता है जिससे उनके
बेहतर तकनीक और उत्पादन की
क्षमता में वृद्धि के साथ नये
बाजार के द्वार खुलते
हैं जबकि दूसरे समूह का मानना है
कि यह विकासशील देशों
के घरेल उद्योगों को संरक्षण नहीं
प्रदान करता है । भारतीय
संदर्भ में देखने पर हम पाते
हैं कि वैश्वीकरण ने
जीवन निर्वहन सुविधाओं को बेहतर किया
है तथा मनोरंजन , संचार , परिवहन इत्यादि क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसरों
का विस्तार किया है ।
🔹 सकारात्मक प्रभाव :-
i ) उच्च
आर्थिक समृद्धि दर
ii ) विदेशी
निवेश में वृद्धि
iii ) विदेशी
मुद्रा भंडार में वृद्धि
iv ) नियंत्रित
मुद्रास्फीति
v ) निर्यात
संरचना में परिवर्तन
vi ) निर्यात
की दिशा में परिवर्तन
vii ) उपभोक्ता
की संप्रभुता स्थापित
🔹 नकारात्मक प्रभाव :-
i ) कृषि
की प्रभावहीनता
ii ) रोजगारविहीन
आर्थिक समृद्धि
iii ) आय
के वितरण में असमानता
iv ) लाभोन्मुखी
समाज
v ) निजीकरण
पर नकारात्मक प्रभाव
vi ) संसाधनों
का अतिशय दोहन
vii ) पर्यावरणीय अपक्षय
🔹 विमुद्रीकरण ( 8 नवंबर 2016 ) :-
भारत
सरकार ने 8 नवम्बर 2016 को भारतीय अर्थव्यवस्था
के लिये अहं घोषणा की कि तत्काल
प्रभाव से 2 सर्वोच्च मूल्य वाली मौद्रिक करेंसी रुपया 1000 और रुपया 50 अब
वैधानिक मुद्रा नहीं रहेगे । कुछ विशिष्ट
उद्देश्यों और स्थानों को
छोड़कर । इससे चलन
में जारी 86 % मुद्रा तत्काल अवैध हो गयी ।
कुछ निश्चित प्रतिबंधों और प्रावधानों के
तहत पुरानी मुद्रा को बैंको में
जमा कराकर बदलने का काम किया
गया । यह अब
तक का अंतिम और
नवीनतम विमुद्रीकरण है ।
🔹 विमुद्रीकरण से तात्पर्य :-
विमुद्रीकरण
एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत
किसी मौद्रिक करेंसी की इकाई का
वैधानिक दर्जा वापस ले लिया जाता
है । दूसरे शब्दों
में सरकार द्वारा वर्तमान की वैधानिक मुद्रा
इकाई को चलन से
बाहर करने के लिये अवैध
घोषित कर देना विमुद्रीकरण
कहलाता है ।
सामान्यतः
विमुद्रीकरण के बाद पुरानी
मौद्रिक करेंसी की इकाईयों के
स्थान पर नयी मौद्रिक
करेंसी की इकाई को
चलन में लाया जाता है ।
भारत
में सर्वप्रथम 1946 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 1000 और 10000 की नोटों का
विमुद्रीकरण किया था । 1954 में
3 नये मौद्रिक करेंसी की इकाईयां रुपये
1000 रुपये 5000 तथा रुपये 10 , 000 चलन में लायी गयी । इसके बाद
1978 में भारत सरकार ने गैर कानूनी
लेने - देने और असामाजिक क्रिया
- कलापों को रोकने के
लिये इन नोटो का
पुनः विमुद्रीकरण कर दिया गया
।
🔹 2016 के विमुद्रीकरण के प्रमुख कारण :-
1 . अर्थव्यवस्था
में काले धन की मात्रा
बहुत अधिक बढ़ गयी थी ।
2 . भारत
में नकली नोटों का प्रवाह और
चलन बढ़ गया था ।
3 . नकली
नोटों तथा बड़ी नोटों का प्रयोग आतंकवाद
और नक्सलवाद को पोषित करने
में भी किया जा
रहा था ।
4 . बड़ी
नोटों की जमाखोरी के
कारण राजकोषीय विस्तार कम हो गया
था ।
5 . बैंक
प्रणाली में तरलता की कमी थी
।
6 . भारत
की औपचारिक अर्थव्यवस्था की तुलनामें अनौपचारिक
अर्थव्यवस्था बढ़ रही थी ।
7 . समानान्तर
अर्थव्यवस्था चल रही थी
। उपर्युक्त कारण अर्थव्यवस्था के व्यवधान के
रूप में देखे जा रहे थे
। इन व्यवधानों से
निजात पाने के लिये विमुद्रीकरण
का रास्ता अपनाया गया ।
🔹 विमुद्रीकरण के संभावित लाभ :-
1 . भ्रष्टाचार
में कमी ।
2 . उच्च
मूल्यों वाली नकली नोटों द्वारा गैर कानूनी क्रियाप - कलापों में कमी ।
3 . काले
धन के संचय पर
आघात ।
4 . बचत
की मात्रा में वृद्धि ।
5 . व्याज
दरों में गिरावट ।
6 . औपचारिक
अर्थव्यवस्था का विस्तार ।
7 . असामाजिक
गतिविधियों पर लगाम ।
🔹 विमुद्रीकरण की विशेषताएं :-
1 . विमुद्रीकरण
से कर प्रशासन और
कर संरचना का विस्तार हुआ
।
2 . स्वैच्छिक
आय घोषणा द्वारा सरकारी राजस्व में वृद्धि ।
3 . विमुद्रीकरण
इस बात का संकेत था
, कि सरकार द्वारा आने वाले समय में कर अपवन को
गंभीरता से लिया जायेगा
।
4 . वित्तीय
प्रणाली में बचत और निवेश के
औपचारिक सम्बन्ध को विस्तार मिला
।
5 . बैंकों
को ऋण प्रदान करने
के लिए तरलता का आधार विस्तृत
हुआ इससे व्याज दरों में कमी आयी ।
6 . नकद
लेन - देन अर्थव्यवस्था में कमी हुई और नकद रहित
अर्थव्यवस्था की ओर _ _ _ भारतीय
अर्थव्यवस्था अनुगमन हुआ ।
7 . डिजिटल
लेन - देन और पालस्टिक मुद्रा
को प्रोत्साहन मिला ।
🔹 विमुद्रीकरण के प्रभाव :-
1 . नकद
लेन - देन में कमी ।
2 . बैंक
जमाओं में वृद्धि ।
3 . वित्तीय
बचत में वृद्धि ।
4 . व्याज
दरों में कमी ।
5 . अचल
सम्पत्तियों की कीमतों में
गिरावट |
6 . नये
उपयोग कर्ताओं के बीच डिजिटल
स्थानान्तरण में वृद्धि ।
7 . आय
- कर में वृद्धि ।
8 . सरकार
के राजस्व में वृद्धि ।
9 . आयकर
के कराधार में वृद्धि ।
🔹 वस्तु एवं सेवा कर ( Goods & Service
Tax ) ( 1 जुलाई
2017 )
वस्तु
एवं सेवाकर भारत के आर्थिक सुधारों
की प्रक्रिया में दूसरी पीढ़ी के सुधारों में
अब तक का सबसे
बड़ा कर सुधार है
। यह कर सुधार
भारत के अप्रयक्ष कर
सुधारों को सबसे अधिक
विस्तृत करने वाला और पूर्णतः की
ओर ले जाने वाला
है । जी . एस
. टी . पर विचार करने
के लिए बनायी गयी राज्य वित्त मंत्रियों की सशक्त समिति
ने 10 नवम्बर 2009 को दोहरे जी
. एस . टी . कर प्रस्ताव दिया
था । जो केन्द्र
और राज्य दोनों को करारोपण की
शक्ति प्रदान करता है । जी
. एस . टी . लागू करने के लिये संविधान
संशोधन किया गया क्योंकि वस्तुओं के उत्पादन पर
कर लगाने का अधिकार केन्द्र
सरकार के पास था
और वस्तुओं के विक्रय पर
कर लगाने का अधिकार राज्य
सरकारों के पास था
। सेवाओं पर भी कर
लगाने का अधिकार केन्द्र
सरकार के पास था
। इसी तरह वस्तुओं और सेवाओं के
आयात पर कर लगाने
का अधिकार केन्द्र के ही पास
था । इन्हीं विभिन्नताओं
में एक रूपता लाने
के लिये संविधान संशोधन किया गया ।
🔹 वस्तु एंव सेवाकर का अर्थ :-
वस्तु
एवं सेवाकर एक व्यापक अप्रत्यक्ष
कर है जो वस्तुओं
और सेवाओं के बीच बिना
भेद - भाव किये राष्ट्रीय स्तर पर उनके विनिर्माण
उत्पादन , विक्रय तथा उपभोग पर लगाया जाता
है । यह कर
केन्द्र और राज्य सरकारों
द्वारा लगाये जा रहे लगभग
सभी अप्रत्यक्ष करों को प्रतिस्थापित कर
देगा । यह बहु
- बिंदु कर व्यवस्था एकल
बिंदु कर व्यवस्था की
ओर ले जायेगा ।
इसके अन्तर्गत हर व्यक्ति अपने
उत्पाद पर कर अदा
करने के लिये उत्तरदायी
होगा और अपने आदतों
पर अदा किये गये कर का आगत
कर रसीद प्राप्त करने का हकदार होगा
।
🔹 वस्तु एवं सेवाकर के प्रकार :-
वस्तु
और सेवाकर 3 प्रकार का है
1 . राज्य
स्तरीय वस्तु एवं सेवाकर - यह ऐसा कर
है जो राज्य सरकार
के राजस्व विभाग को अदा किया
जाता है । यह
सामान्यतः संघीय वस्तु सेवा कर के समान
होता है । यह
कर वर्तमान राज्य स्तरीय वैठ ( मूल्य वर्धित कर ) अविा विक्रीकर का स्थान लेगा
।
2 . संघीय
वस्तु एवं सेवाकर - यह ऐसा कर
है जो केन्द्र सरकार
के राजस्व विभाग को अदा किया
जाता है । यह
लगभग राज्यस्तरीय वस्तु सेवा कर के बराबर
होता है । यह
उत्पाद शुल्क और सेवा कर
जैसे केन्द्र सरकारक करों का स्थान लिया
। स्थानीय विक्री की दशा में
जी . एस . टी . का 50 % संघीय वस्तु सेवाकर के रूप में
केन्द्र सरकार को हस्तांतरित किया
जाता है ।
3 . समन्वित
वस्तु एवं सेवाकर - यह कर अंतर्राज्यीय
क्रय - विक्रय पर लगाया जाता
है । इसका एक
हिस्सा केन्द्र सरकार तथा शेष हिस्सा राज्य सरकार को हस्तान्तरिक किया
जाता है ।
🔹 वस्तु एवं सेवाकर के उद्देश्य :-
1 . बहुबिंदु
कर प्रणाली को समाप्त कर
ना ।
2 . वस्तुओं
और सेवाओं की लागत वितरण
और उत्पादन पर कर के
प्रपाती प्रभाव को समाप्त करना
।
3 . बाजार
में मूलतः वस्तुओं और सेवाओं की
प्रतियोगिता को बढ़ावा देना
।
4 . सकल
घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर
में सकारात्मक योगदान ।
5 . विभिन्न
अप्रत्यक्ष करों का एकीकरण ।
🔹 वस्तु एवं सेवाकरों की दरे - भारत में इसे 5 दरों में विभाजित किया गया है ।
1 . सभी
मूलभूत आवश्यकता बाकी वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये शून्य
प्रतिशत वस्तु एवं सेवाकर के दायरे पर
रखा गया है । जैसे
- खाद्यान्य , बेड , नमक , किताबे , आदि ।
2 . कुछ
उच्च उपभोग वस्तुओं पर 5 % की दर से
वस्तु एवं सेवा कर लगाया जाताहै
। जैसे - पनीर , डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ , चाय , कॉफी आदि ।
3 . उच्च
जन उपभोग वस्तुओं पर 12 % जैसे - मोबाइल , मिठाइयां दवायें आदि ।
4 . सभी
तरह की सेवाओं पर
18 % की दर से वस्तु
एवं सेवाकर लगाया जाता है ।
5 . अन्य
सभी बिलासी वस्तुओं पर 28 % की दर से
वस्तु एवं सेवाकर लगाया जाता है । पेट्रोल
, गैस , कच्चे तेल , डीजल आदि को वस्तु एवं
सेवा कर के दायरे
से बाहर रखा गया है ।
सर्व
प्रथम यह कर 1954 में
फ्रांस में लगाया गया था । वर्तमान
में लगभग 150 देशों में यह कर लागू
है । भारत में
यह कर 1 जुलाई , 2017 से ' एक देश ' ' एक
कर ' के नारे के
साथ लागू किया गया ।
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