अध्याय - 1
राष्ट्रीय आय एवं सम्बद्ध समाहार
उपभोक्ता वस्तुएँ :-
वे अंतिम वस्तुएँ और सेवायें जो प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता की मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं । उपभोक्ता द्वारा क्रय की गई वस्तुएँ और सेवाएँ उपभोक्ता वस्तुएँ हैं ।
पूँजीगत वस्तुएँ :-
ये ऐसी अंतिम वस्तुएँ हैं जो उत्पादन में सहायक होती हैं तथा आय सृजन के लिए प्रयोग की जाती हैं । ये उत्पादक की पूँजीगत परिसंपत्ति में वृद्धि करती हैं ।
अंतिम वस्तुएँ :-
वे वस्तुएँ जो उपभोग व निवेश के लिए उपलब्ध होती हैं ये पुनर्विक्रय या मूल्यवर्द्धन के लिए नहीं होती । उपभोक्ता द्वारा उपयोग की
गई सभी वस्तुएँ व सेवाएँ अंतिम वस्तुएँ होती हैं ।
मध्यवर्ती वस्तुएँ :-
ये ऐसी वस्तुएँ और सेवायें हैं , जिनकी एक ही वर्ष में पुनः बिक्री की जा सकती हैं या अंतिम वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती हैं या जिनका रूपांतरण संभव है । ये प्रत्यक्ष रूप से मानव आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती । उत्पादक द्वारा प्रयोग की गई सेवाएँ जैसे वकील की सेवाएँ ; कच्चे माल उपयोग ।
निवेश :-
एक निश्चित समय में पूंजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि निवेश कहलाता है । इसे पूंजी निर्माण या विनियोग भी कहते हैं ।
मूल्यह्रास :-
सामान्य टूट - फूट या अप्रचलन के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट को मूल्यह्रास या अचल पूंजी का उपभोग कहते हैं । मूल्यहास , स्थायी पूंजी के मूल्य को उसकी अनुमानित आयु ( वर्षों में ) से भाग करके ज्ञात किया जाता है ।
सकल निवेश :-
एक निश्चित समयावधि में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में कुल वृद्धि सकल निवेश कहलाती है । इसमें मूल्यह्रास शामिल होता है ।
निवल निवेश :-
एक अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समयावधि में पूंजीगत वस्तुओं के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि निवल निवेश कहलाता है । इसमें मूल्यह्रास शामिल नहीं होता है ।
निवल निवेश = सकल निवेश - घिसावट ( मूल्य ह्रास )
आय के चक्रीय प्रवाह :-
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं एवं साधन सेवाओं तथा मौद्रिक आय के सतत् प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं । इसकी प्रकृति चक्रीय होती है क्योंकि न तो इसका कोई आरम्भिक बिन्दु है और न ही कोई अन्तिम बिन्दु । वास्तविक प्रवाह उत्पादित सेवाओं तथा वस्तुओं और साधन सेवाओं का प्रवाह दर्शाता है । मौद्रिक प्रवाह उपभोग व्यय और साधन भुगतान के प्रवाह को दर्शाता है ।
स्टॉक :-
स्टॉक एक ऐसी मात्रा ( चर ) है जो किसी निश्चित समय बिन्दु पर मापी जाती है ; जैसे राष्ट्रीय धन एवं सम्पत्ति , मुद्रा की आपूर्ति आदि ।
प्रवाह :-
प्रवाह एक ऐसी मात्रा ( चर ) है जिसे समय अवधि में मापा जाता है ; जैसे राष्ट्रीय आय ; निवेश आदि ।
आर्थिक सीमा :-
यह सरकार द्वारा प्रशासित व भौगोलिक सीमा है जिसमें व्यक्ति , वस्तु व पूँजी का स्वतंत्र प्रवाह होता है ।
आर्थिक सीमा क्षेत्र :-
1 . राजनैतिक , समुद्री व हवाई सीमा ।
2 . विदेशों में स्थित दूतावास , वाणिज्य दूतावास , सैनिक प्रतिष्ठान , राजनयिक भवन आदि ।
3 . जहाज तथा वायुयान जो दो देशों के बीच आपसी सहमति से चलाए जाते
4 . मछली पकड़ने की नौकाएँ , तेल व गैस निकालने वाले यान तथा तैरने वाले प्लेटफार्म जो देशवासियों द्वारा चलाए जाते हैं ।
सामान्य निवासी :-
किसी देश का सामान्य निवासी उस व्यक्ति अथवा संस्था को माना जाता है जिसके आर्थिक हित उसी देश की आर्थिक सीमा में केन्द्रित हों जिसमें वह सामान्यतः एक वर्ष से रहता है ।
उत्पादन का मूल्य :-
एक उत्पादन इकाई द्वारा एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं व सेवाओं का बाजार मूल्य उत्पादन का मूल्य कहलाता है ।
उत्पादन
का
मूल्य
= बेची
गई
इकाई
x बाजार कीमत + स्टॉक में परिवर्तन ।
साधन आय :-
उत्पादन के साधनों ( श्रम , भूमि , पूँजी तथा उद्यम ) द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में प्रदान की गई सेवाओं से प्राप्त आय , साधन आय कहलाती है । जैसे , वेतन व मजदूरी , किराया , ब्याज आदि ।
हस्तांतरण भुगतान :-
यह एक पक्षीय भुगतान होते हैं जिनके बदले में कुछ नहीं मिलता है । बिना किसी उत्पादन सेवा के प्राप्त आय । जैसे वृद्धावस्था पेंशन , कर , छात्रवृत्ति आदि ।
पूँजीगत लाभ :-
पूँजीगत सम्पत्तियों तथा वित्तीय सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि , जो समय बीतने के साथ होती है , यह क्रय मूल्य से अधिक मूल्य होता है । यह सम्पत्ति की बिक्री के समय प्राप्त होता है ।
कर्मचारियों का पारिश्रमिक :-
श्रम साधन द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में प्रदान की गई साधन सेवाओं के लिए किया गया भुगतान ( नगर व वस्तु ) कर्मचारियों का पारिश्रमिक कहलाता है । इसमें वेतन , मजदूरी , बोनस , नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा में योगदान शामिल होता है ।
परिचालन अधिशेष :-
उत्पादन प्रक्रिया में श्रम को कर्मचारियों का पारिश्रमिक का भुगतान करने के पश्चात् जो राशि बचती है । यह किराया , ब्याज व लाभ का योग होता है ।
बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ( GDP(MP) ) :-
एक वर्ष की अवधि में अर्थव्यवस्था के घरेलू सीमा के अन्तर्गत उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्यों के योग को बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं ।
बाजार कीमत पर निवल देशीय उत्पाद ( NDP(MP) ) :-
NDP(MP) =
GDPMP - मूल्यह्रास
साधन लागत पर निवल देशीय आय ( NDP(FC) ) :-
एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में उत्पादन कारकों की आय का योग , जो कारकों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बदले प्राप्त होती है को देशीय आय कहते हैं ।
NDPFC =
GDPMP - मूल्यह्रास - निवल अप्रत्यक्ष कर ।
राष्ट्रीय समाहार
बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद ( GNP(MP) ) :-
एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में देश की घरेलू सीमा व विदेशों में उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के बाजार मूल्यों के योग को GNPM कहते हैं ।
बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद ( NNP(MP) ) :
NNP(MP) = GNP(MP) - मूल्यह्रास
राष्ट्रीय आय ( NNPFC ) :-
एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा व शेष विश्व से अर्जित साधन आय का योग राष्ट्रीय आय कहलाती है ।
NNP(FC) = NDP(FC) +
NFIA = राष्ट्रीय आय
क्षरण :-
आय के चक्रीय प्रवाह से निकाली गई राशि ( मुद्रा के रूप में ) की क्षरण कहते हैं ; जैसे कर , बचत तथा आयात को क्षरण कहते हैं ।
भरण :-
आय के चक्रीय प्रवाह में डाली गई राशि ( मुद्रा की मात्रा ) को भरण कहते हैं ; जैसे निवेश , सरकारी व्यय , निर्यात ।
वर्धित मूल्य ( मूल्यवृद्धि ) :-
किसी उत्पादन इकाई द्वारा निश्चित समय में किए गए उत्पादन के मूल्य तथा प्रयुक्त मध्यवर्ती उपभोग के मूल्य का अंतर वर्धित मूल्य कहलाता है ।
दोहरी गणना की समस्या :-
राष्ट्रीय आय आंकलन में जब किसी वस्तु के मूल्य की एक से अधिक बार गणना की जाती है उसे दोहरी गणना कहते हैं । इससे राष्ट्रीय आय अधिमूल्यांकन दर्शाता है । इसलिए इसे दोहरी गणना की समस्या कहते हैं ।
कुछ महत्वपूर्ण समीकरण
✳️ सकल = निवल ( शुद्ध ) + मूल्यह्रास
( स्थायी पूँजी का उपभोग )
✳️ राष्ट्रीय = घरेलू + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ।
✳️ बाजार कीमत = साधन लागत + निवल अप्रत्यक्ष
कर ( NIT )
✳️ निवल अप्रत्यक्ष
कर ( NIT ) = अप्रत्यक्ष
कर - सहायिकी ( आर्थिक सहायता )
✳️ विदेशों से शुद्ध साधन आय ( कारक ) = विदेशों से साधन आय - विदेशों को साधन आय
राष्ट्रीय आय अनुमानित ( मापने ) करने की विधिया
आय विधि
प्रथम चरण
साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद / निवल घरेलू साधन आय ( NDPFC ) = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय ।
द्वितीय चरण
साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद / राष्ट्रीय आय = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ।
NNP(FC) = NDP(FC) + NFIA
उत्पाद विधि अथवा मूल्य वर्द्धित विधि
प्रथम चरण
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = प्राथमिक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य + द्वितीयक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य + तृतीयक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य ।
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ( GDPMP ) = बिक्री + स्टॉक में परितर्वन - मध्यवर्ती उपभोग ।
द्वितीय चरण
बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद NDPMP = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDPMP - मूल्यह्रास ।
तृतीय चरण
साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPFC ) = बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPFC ) - शुद्ध अप्रत्यक्ष कर ( NIT )
चतुर्थ चरण
साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद / राष्ट्रीय आय ( NNPFC ) = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPFC ) + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ( NFIA )
व्यय विधि
प्रथम चरण
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = निजी अंतिम उपयोग व्यय + सरकारी अंतिम उपयोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध / निवल निर्यात्
GDPMP = C + G + I + ( X - M
)
द्वितीय चरण
बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPMP ) = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ( GDPMP ) - मूल्यह्रास ।
तृतीय चरण
साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPFC ) = बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPMP ) - शुद्ध अप्रत्यक्ष कर ( NIT )
चतुर्थ चरण
साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद / राष्ट्रीय आय ( NNPFC ) = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPFC ) + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ( NFIA )
विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ( NFIA ) :-
देश के सामान्य निवासियों द्वारा विदेशों को प्रदान की गई साधन सेवाओं से प्राप्त आय तथा विदेशों को दी गई साधन आय के बीच के अंतर को विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय कहते हैं । इसके निम्न घटक होते हैं :
1 . कर्मचारियों का निवल पारिश्रमिक
2 . सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से निवल आय तथा
3 . विदेशों से निवासी कम्पनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय ।
चालू हस्तांतरण :-
वह गैर - अर्जित आय जो देने वाले ( Doner ) के चालू आय में से निकलता है और प्राप्त करने वाले ( Recipient ) के चालू आय में जोड़ा जाता है , उसे चालू हस्तांतरण आय कहते हैं ।
पूँजीगत हस्तांतरण :-
वह गैर - अर्जित आय जो देने वाले के धन तथा पूँजी से निकलता है तथा प्राप्त करने वाले के धन तथा पूँजी में शामिल होता है , उसे पूंजीगत हस्तांतरण कहते हैं ।
सावधानियां :
1 . मूल्यवर्द्धित विधिः
( i ) दोहरी गणना का त्याग ।
( ii ) वस्तुओं के पुनः विक्रय को सम्मिलित नहीं करते ।
( iii ) स्वउपयोग के लिए उत्पादित वस्तु को सम्मिलित किया जाता है ।
2 . आय विधिः
( i ) हस्तांतरण आय को सम्मिलित नहीं करते है
( ii ) पूजीगत लाभ को सम्मिलित नहीं करते ।
( iii ) स्वउपयोग उत्पादित वस्तु से उत्पन्न आय को सम्मिलित करते हैं ।
( iv ) उत्पाद कर्ता द्वारा प्रस्तु मुफ्त सेवाओं को सम्मिलित करते हैं ।
3 . व्यय विधिः
( i ) मध्यवर्ती व्यय को सम्मिलित नहीं
( ii ) पूनः विक्रय वस्तुओं पर रूपको सम्मिलित नहीं करते ।
( iii ) वित्तिय परिसम्पतियों पर व्यय सम्मिलित नहीं करते ।
( iv ) हस्तांतरण भुगतान का त्याग
GDP का स्वरूप दो प्रकार का होता है ।
1 . वास्तविक GDP :
एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा के अंतर्गत एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तओं एवं सेवाओं का , यदि मूल्यांकन आधार वर्ष की कीमतों ( स्थिर कीमतों ) पर किया जाता है तो उसे वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं । इसे स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद भी कहते हैं । यह केवल उत्पादन मात्रा में परिवर्तन के कारण परिवर्तित होता हैं इसे आर्थिक विकास का एक सूचक माना जाता है ।
2 . मौद्रिक GDP : एक अर्थव्यवस्था की घरेल सीमा के अंतर्गत एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का , यदि मूल्यांकन चालू वर्ष की कीमतों ( चालू कीमतों ) पर किया जाता है तो उसे मौद्रिक GDP कहते हैं । इसे चालू कीमतों पर GDP भी कहते हैं । यह उत्पादन मात्रा तथा कीमत स्तर दोनों में परिवर्तन से प्रभावित होता है । इसे आर्थिक विकास का एक सूचक नहीं माना जाता ।
चूंकि कीमत सूचकांक चालू कीमत अनुमानों को घटाकर स्थिर कीमत अनुमान के रूप में लाने हेतु एक अपस्फायक की भूमिका अदा करता है । इसलिए इसे सकल घरेलू उत्पाद अपस्फायक कहा जाता है ।
सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याण :-
सामान्यतः सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याण में प्रत्यक्ष संबंध होता है । उच्चतर GDP का अर्थ है वस्तुओं एवं सेवाओं के अधिक उत्पादन का होना । इसका तात्पर्य है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक उपलब्धता । परन्तु इसका अर्थ यह निकालना कि लोगों का कल्याण पहले से अच्छा है , आवश्यक नहीं है । दूसरे शब्दों में , उच्चतर GDP का तात्पर्य लोगों के कल्याण में वृद्धि का होना , आवश्यक नहीं हैं ।
कल्याण :-
इसका तात्पर्य लोगों के भौतिक सुख - सुविधाओं से है । यह अनेक आर्थिक एवं गैर - आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है । आर्थिक कारक जैसे राष्ट्रीय आय , उपभोग का स्तर आदि और गैर - आर्थिक कारक जैसे पर्यावरण प्रदूषण , कानून व्यवस्था , सामाजिक अशांति आदि । वह कल्याण जो आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे आर्थिक कल्याण तथा जो गैर - आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे गैर आर्थिक कल्याण कहा जाता है । दोनों के योग को सामाजिक कल्याण कहा जाता है ।
निष्कर्ष :-
दोनों में अर्थात् GDP एवं कल्याण में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है परन्तु यह संबंध निम्नलिखित कारणों से अपूर्ण एवं अधूरा है । GDP को आर्थिक कल्याण के सूचक के रूप में सीमाएँ निम्न हैं
1 . बाह्यताएँ : इससे तात्पर्य व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई उन क्रियाओं से है जिनका बुरा ( या अच्छा ) प्रभाव दूसरों पर पड़ता है लेकिन इसके लिए उन्हें दण्डित ( लाभान्वित ) नहीं किया जाता । उदाहरण - कारखानों का धुंआ ( नकारात्मक बाह्यताएँ ) तथा फ्लाईओवर का निर्माण ( सकारात्मक बाह्यताएँ ) ।
2 . GDP की संरचना : यदि GDP में वृद्धि , युद्ध सामग्री के उत्पादन में वृद्धि के कारण हैं तो GDP में वृद्धि से कल्याण में वृद्धि नहीं होगी ।
3 . GDP का वितरण : GDP में वृद्धि से कल्याण में वृद्धि नहीं होगी यदि आय का असमान वितरण है . अमीर अधिक अमीर हो जाएंगे तथा गरीब अधिक गरीब हो जाएंगे ।
4 . गैर - माद्रिक लेन - देन : GDP में कल्याण को बढ़ाने वाले गैर मौद्रिक लेन - देन को शामिल नहीं किया जाता है ।
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